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Showing posts from August 4, 2015

ना बात करों

साभार गुगल  अब ना मेहताब ना आफ़ताब कि यू  बातें करों रंज कि शाम है अब  ना कोई बात यू बाकी करों  सो गई रात अब ना दिन ये रहा मुझ पे मेहरबान  अब तकाज़ा किसी भी बात का कोई यू हम से करो   बहुत रो कर  दिन काट लिए ना बेकार कि बात  करों  तू मिला "अरु" हँस लिए मुस्कुराने कि ना बात करों  आराधना राय "अरु" 

परमात्मा

 मेरे परमात्मा मेरी आत्मा  हो तुम  अधीर विकल क्यों ये रहे मेरा ये मन  विचारों का कोहराम बना ये कोलाहल   मनवा ना माने रे मेरा ये तो है व्याकुल जग को जगाने वाले तुम को क्या मनाऊँ हे अंतर्यामी कौन सी बतियाँ करू  बताऊँ  शुद्ध परिष्कृत इस जग कि सारी अवधारणा निर्मल ह्रदय में तुम वासित रहे "अरु" भावना आराधना राय "अरु"

आतंक

मन ये आतंक का शिकार व्यर्थ सा क्यों अब हो कहीं खो गया निष्फल हो रही देव साधना और मानव कहीं तिरोहित हो गया मन  बेचैनी का दर्पण सुख पे रीझा दुःख में कुम्हलाया रीत गया जाने कौन सी स्मृति का विस्मित सा यू ही अब तो  हरण हो गया जग बैरी था उसमें जीना व्यवधान सा  दुष्कर यू प्रतीत ही हो गया उन्मुक्त ह्दय भी बेड़ियों के अधीन क्यों अब व्यथित सा हो गया भावनाओं के साथ खेलता ये संसार था जीवन जीना यू प्रश्न हो गया "अरु" साँकल चढ़ा लो दरवाज़ों पे यहाँ अब आतंक का व्यापार हो गया आराधना राय