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Showing posts from November 30, 2015

माँ

माँ --------------------------------- सब को निवाला खिला कर आप भूखी रह पानी पी कर  ज़िन्दगी टुकड़ों में बिताती है रोते बच्चों के लिए हँस जाती है यौवन अपना होम कर जाती है रोटी कमाने में पीसी जाती है साड़ी की गाँठ में बंध जी जाती है संतान मुख देख सात- फेरों का दर्द झेल बिखर संवर जाती है सर्द रातों में कांपते बच्चों का संबल बन कर जीवन दे जाती है अमीर हो गरीब माँ - कहलाती है "अरु" संतान के लिए जगत में जीवन का जहर हँस के पी जाती है आराधना राय "अरु"