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Showing posts from August 20, 2015

आहट

तेरे कदमों की आहट पता मेरा क्यों बताती है चले हो साथ मेरे तो निगाहों में बसें ही रहना मेरे दिल के आईने मैं रोज़ चमकती ही रहना कहीं भी धूल मिल जाए तो साफ करते रहना बहुत आसान है किसी से भी प्यार यूँ कर लेना  मुश्किल है किसी के गुनाहों को माफ कर देना मेरी दुनियाँ, तेरी दुनियाँ की बातें पूछते रहना अजब से कायदें कानूनों की 'अरु ' कैद में रहना   आराधना राय  'अरु' नोट - ये नज़्म  मैंने ख़ुद  को एक पुरुष ------आदमी  मान कर  लिखी है  पता नहीं कितनी क़ामयाब  हुईं हूँ , स्त्री  होकर पुरुष कि भाषा बोलने में  ये आप बतायेंगे।   

गुज़रती हूँ گزرتی ہوں

साभार गूगल कोई वादा नहीं फिर भी जाने क्यों मिलती हूँ तुम्हे देख कर जाने क्यों यूँ ही फिर हँसती हूँ ज़माने भर की कई बातें कह कर गुज़रती  हूँ बड़ी खामोशियाँ है ज़िंदगी में खुद से डरती हूँ तेरे सामने से हर रोज़ में जब भी गुज़रती हूँ तेरे चेहरे की लकीरों को जाने क्यों पढ़ती हूँ रह- रह कर ख्यालों से अपने क्यों यूँ डरती हूँ तुम्हें देख कर जाने क्यों" अरु " यूँ मचलती हूँ आराधना राय "अरु" کوئی وعدہ نہیں پھر بھی جانے کیوں ملتی ہوں تمہیں دیکھ کر جانے کیوں یوں ہی پھر ہنستی ہوں زمانے بھر کی بہت سی چیزیں کہہ کر گزرتی ہوں بڑی كھاموشيا ہے زندگی میں خود سے ڈرتی ہوں تیرے سامنے سے ہر روز میں جب بھی گزرتی ہوں تیرے چہرے کی لکیروں کو جانے کیوں پڑھتی ہوں ره- رہ کر كھيالو سے آپ کیوں یوں ڈرتی ہوں آپ کو دیکھ کر جانے کیوں "ار" یوں مچلتي ہوں آرادنا رائے "ار"