तेरे कदमों की आहट पता मेरा क्यों बताती है चले हो साथ मेरे तो निगाहों में बसें ही रहना मेरे दिल के आईने मैं रोज़ चमकती ही रहना कहीं भी धूल मिल जाए तो साफ करते रहना बहुत आसान है किसी से भी प्यार यूँ कर लेना मुश्किल है किसी के गुनाहों को माफ कर देना मेरी दुनियाँ, तेरी दुनियाँ की बातें पूछते रहना अजब से कायदें कानूनों की 'अरु ' कैद में रहना आराधना राय 'अरु' नोट - ये नज़्म मैंने ख़ुद को एक पुरुष ------आदमी मान कर लिखी है पता नहीं कितनी क़ामयाब हुईं हूँ , स्त्री होकर पुरुष कि भाषा बोलने में ये आप बतायेंगे।
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.