सौदा खुद बाज़ार में ये कैसा हो गया तमाशाई खुद यहाँ पर तमाशा हो गया कौन सा दिन कहर का नाज़िल हो गया लोगों की दुश्वारी से कोई परेशां हो गया दिल के जाने पर हादसा साथ हो गया साहिल पे कश्तियाँ डुबों शर्मिंदा हो गया बयाँ कर सका ना कोई तकदीर हो गया जिंदगी तेरे हाथों कोई निराश हो गया सौ- मुश्किलें पड़ी दिल तार- तार हो गया बस्ती के लोगों के लिए कहकशां सा हो गया अहसान फरामोश ही जब कारवां हो गया फ़कीरी में रहना भी "अरु" इक नशा हो गया © आराधना राय "अरु"
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.