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Showing posts from March 11, 2015

मान रख जाऊँ

सैकड़ो बार क्यों ठुकराई जाऊँ कभी निष्कासित करी जाऊँ  वन-वन   में भटकाई  जाऊँ किसी राम कि सीता थी क्या जो  अग्नि परीक्षा भी  दे जाऊँ नहीं द्रौपदी मैं किसी की भी जो पांडव मे भी बाँटी जाऊँ है ये कौन सा साम्राज्य यहाँ जहाँ रोज़ मैं निगली जाऊँ कौरवों के साये में रह कर रोज़ ही दाँव पर खेली जाऊँ रोज़ अख़बार कि सुर्खियों में इधर -उधर ही बांची जाऊँ रद्दी की ढेरों में फेंकी जाऊँ  चाय कि प्यालियो कि तरह मेज़ पर बस परस भर दी जाऊँ भूमि के टुकड़े कि तरह यू ही भागों में बटती ही चली जाऊँ श्याम  नहीं तुम   राधा बन जाऊँ राम नहीं तुम  मैं सीता  बन जाऊँ नारी हुँ नारी का मान रख जाऊँ आराधना

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना 

रास्ते दुनियाँ के

छिपाना भी ज़रूरी था बताना भी ज़रूरी था ये  दस्तूर दुनियाँ का निभाना भी ज़रूरी था। वही मंज़र पुराने से वही वो वदिया होंगी नई बस्ती बसाने में समय का दायरा होगा। गए जो रास्ते मुड़के न उनका पता होगा निगाहों से ज़रा पूछो नया क्या मरहला होगा। आराधना