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Showing posts from March 31, 2015

कवित -परंग

                                    कवित -परंग  -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- बोल कोई मीठे कोई बोलता है वही मन में कहीं समां जाता है भाव विह्ल हो मूक हो जाते है , शब्द नए गढ़ जीवन  पाते  है कोई  रूप रंग  में ढल जाते है फिर भावों में सृजन पलता है सुख सपनों  का यही संसार है बनता सहज़ जीवन आधार है ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ज़िन्दगी आसान नहीं फिर भी चलना होगा रहेंगी बात सदा याद मुझे अब बदलना होगा -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- जाने क्याये  कह जाती है मुझसे यू  हवा रह रह कर कौन सी बात उठी सरे बाज़ार कुछ कह ना सकी रह रह कर -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- गीतों के मौसम में साज़ बन के देखिये नई

ज़िंदगी

 साभार गुगल मैं इंसान बन के  क्या जीती अधूरी बची ज़िंदगी उधार क्या देती आये वो दो बूंद बन कर बरस जाये होठ चुप है मगर मैं ख़ामोश नहीं होती राह कैसी भी थी चुपचाप चले वरना ज़िंदगी में तेरे ज़ीने कि वजह क्या होती मेरी मुट्ठी में सीप बंद रही तेरी फितरत यू सराब में अब कहाँ होती आराधना