नज्म माना जीने कि उम्मीद है कम फिर भी उम्मीद है मेरे जीने की सुलगती रहती है आवे की तरह सोच है मेरी या आग सीने की . रोज़ होती है आंखे अश्कबार सीख ली हमने अदा जीने की धडकती रहती है सीने में कही लो लगा दी हमने आग सीने की
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