साभार गूगल दिल ही समझे दिल की बात। ..... छोटी सी बात ( लधु -कथा ) ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- कोई बात नहीं हुई थी , फिर भी लग रहा था की कोई शीत युद्धचल रहा है। कनक लगभग अपना सामान बाँध चुकी थी , उसने अनमने ढंग से सुकेश से पूछा " तुम्हारा सामान बांध दू या नहीं" । "नहीं " अख़बार एक तरफ फेक कर उसने दो टूक उत्तर दिया। कनक को जैसे मालूम था , की सुकेश क्यों उस के मायके उस के साथ नहीं जा रहा बोलना बहुत कुछ चाहती थी मगर बोली नहीं, मन मसोस कर सामान लगाती रही। पता नहीं सुकेश को साथ न देख क्या बोले माँ बाबूजी , मन ही मन वो भयभीत होती रही। बड़ी देर तक खुद ही अपने माँ बाबूजी की कल्पना कर प्रश्नों के उत्तर देती रही। टिकट रखने से लेकर , घर का बिखरा सामान लगाने तक , कनक खुद को ही कोस रही थी ,और करो प्रेम - विवाह कनक ,ऐसा ही होगा तुम्हारे साथ ,अब माँ - बाबूजी को दोष देती हुई ,मायके थोड़ी ही जा सकती थी। विवाह तो किया
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