सितम ----------------------------------------- खुल गए रास्ते ,बात अब सब आम हुई यूँ ही झंडे पकड़ हाथ में अब हड़ताल हुई देखों जिसे चेहरा ही अजब लिए फिरता है भीड़ में आदमी दीवाना सा क्यों लगता है हर एक शख़्स तुला है अपनी ही कहने को बिसात पे रखा हुआ प्यादा सा ही लगता है रोज़ बढ़ जाती है गरीब कि लड़की की तरह बढ़ती मँहगाई दिनों दिन ये भी क्या खूब है गरीब कि थाली भी खाली ही रहने वाली है रोटी की बातें फैशन सा सितम ढाने वाली है ग़रीब की दुआओ का इनाम कोई यूँ ले गया दवा के नाम पे 'अरु' कैसा वो दर्द साथ ले गया आराधना राय "अरु"
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.