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Showing posts from April 7, 2015

जीत कर हारे

साभार गूगल जीत कर हारे,कभी हार पे हारे बेबसी में जिये तो क्या जिये रूठ कर कभी जो हम जुदा हुए मन के कोने में तुम खुदा हुए  हम थे  बगैर आप के जी गए अश्क खुद अपने आप पी गए ग़ज़ल। .... आराधना 

शाश्वत

  एक वही चिर परिचित स्मित मौन हो परिचय दे अपना नित शाश्वत रहे निष्ठाओं के सत्य अपलक निहारते शांति  पथ्य मान का प्रश्न बना भर्मित तथ्य देव सब हो मौन कहो कैसे  कथ्य उत्सव नहीं बनें जब जल तरंग जीवन बना जिजिविषा का प्रश्न आराधना राय