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Showing posts from July 8, 2015

संधर्ष

   काले बादल  मन कि धरती पर उथल पुथल मचाते है  जब नयन में अश्रु से भर स्मृति दीप वो ही जलाते है   जल -तरंगिणी सी मधुरिम फुहारों में जग लहराते है  नव -गीत प्राणों के यौवन सा जीवन में वो भर जाते है  म्लान क्लांत  तू दिनकर  जब हृदय शुभ्र तू पा जाता है   वेदनाओं से परे रहे वहीं तो  दुःख को भी सह कर जाता है  जल कि बूंदों से भरा जाल ही मेध रथी कहला भी जाता है  "अरू " संधर्ष कैसा भी हो जीवन तो ये चलता ही जाता है  आराधना राय copyright :  Rai Aradhana   ©