अपनी सोच में ध्यान ही नहीं रहा की चाय हो गई है , आराम से बैठ कर चाय पियूँगा और कल छुट्टी का फायदा उठा कर नलिनी से मिलूंगा ,वह मन ही मन कार्यक्रम बना रहा था । "सिळि गर्ल, सोचती है मैं उस के प्यार मे हुँ । प्यार तो मैंने शलिनी को भी नहीं किया था , वक़्ती ख़ुमार था उतर गया "। ये क्या, मैं फिर से........ उसने अपना सर झटका जैसे सर के झटकने से उसकी सोच भी दिमाग से चली जाएगी । उफ़ , उस के मुँह से निकला , वह अब बेचैन हो उठा । चाय का प्याला एक तरफ रख कर वह कमरे में चहल- कदमी करने लगा । ........................क्रमश। …। अब आगे गतांक से आगे ------------------------------- जन्म (भाग -2 ) पंद्रह सालो में ज़माना बदल गया , लोग बदल गए पर उसका डर नहीं बदला । हालांकि जब उसे सब से ज़्यादा नुक़सान जब हो सकता था ,तब वो बचा लिया गया , शहर कोई भी हो सिक्को की खनक हर जगह काम आती है...
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