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Showing posts from May 14, 2015

मंज़िल ना मिली

ज़िन्दगी जब भी जैसी भी रही उसी के क़ायदे कानूनों  में ढ़ली वक़्त का तक़ाज़ा करती ही रही  ढलती शाम टूटे जाम सी  मिली  सफऱ में बहुत दूर हमें जाना था रास्तों में कब अपना ठिकाना था हर मोड़ पर बस वायदे सी मिली ज़िन्दगी तू हमें क्यों देर से मिली रास्तों के बाद बस रास्ते ही मिले मकां मिला ना हमें मंज़िल ही मिली आराधना राय