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Showing posts from November 6, 2015

अजब- हाल

अजब- हाल ---------------------------------------------- सब कुछ बाज़ार में नीलाम हो गया है आदमी -आदमी से बेज़ार हो गया है कहें कौन किस लिए आए यहाँ पर आदमी अब खुद मुख़्तार हो गया है इंसानियत का अजब हाल हो गया है पते है आदमी गुमनाम हो गया है अंधेरों के नाम इक पैगाम हो गया है खरीदों -फरोख्त लगे सारी बेईमानी सी रौशनी की नहीं बात अंधेरों की बोलिए अब किस का किस से सरोकार रह गया है इंसान की इंसानियत का बुरा हाल हो गया है आराधना राय "अरु"