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Showing posts from March 27, 2015

फलक

उठे है खाक से हम तो फलक तेरे निशाने पे उन्हें भी फिक्र क्या अब इस नए फ़साने पे जुल्म -ए निशा  रहा है तू भी मेरे ठिकाने पे   देखे वादिये जां रूकती है अब किस ठिकाने पे सितम और जुल्म कि रह पे चलने वालो को बड़ी  नागवारिया गुजरी किसी  मरने वालो पे  तेरे भी दिल में  कोई खुदा कही तो  रहा होगा तेरा भी एक कही आशना यू भी तो रहा होगा  आराधना

नीड़

जंग लगी बेड़ियों का फिर ये हार क्यों ------------------------------- --- क्षुब्ध संचित जीवन पर अब ये  प्रहार क्यों --------------------------------------- भ्रमित हो चुके गान सारे नव प्रयाण क्यों  -------------------------------------- भोर कि इस लालिमा पर अश्रु धार क्यों ---------------------------------------  रंग विहीन जीवन पर अब ये श्रृंगार क्यों ----------------------------------------- नीड़ का तेरे मेरेअब  फिर निर्माण क्यों आराधना

शम्मा

शम्मा शोर तारी है , ज़ब्रे पे ये सोज़ -ए  सब्र क्यों है हम तो घिरे या लड़े अब यहाँ के  तूफानों से अभी तक होश है, जैसे भी है हम दीवानो में क़फ़स मैं हो के रहे या उडे हम आसमानों में शम्मा  जो जल रही कहीं यहाँ पे वीरानो में नूर ले आई कही से तू भी  इन आसमानों से हम तो मौत को भी जी जाते है फिर "अना" क्यों रुके हम यू ही कही बहते आबसारो  पे आराधना