Skip to main content

फलक





उठे है खाक से हम तो फलक तेरे निशाने पे
उन्हें भी फिक्र क्या अब इस नए फ़साने पे

जुल्म -ए निशा  रहा है तू भी मेरे ठिकाने पे 
 देखे वादिये जां रूकती है अब किस ठिकाने पे

सितम और जुल्म कि रह पे चलने वालो को
बड़ी  नागवारिया गुजरी किसी  मरने वालो पे 

तेरे भी दिल में  कोई खुदा कही तो  रहा होगा
तेरा भी एक कही आशना यू भी तो रहा होगा 

आराधना

Comments

Popular posts from this blog

आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना