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Showing posts from April 5, 2015

चलन

  बेज़ुबानी भी एक चलन है बस जीने का  अपनी ही सोच में अपने आप चलने का धूप थी सख्त पर कोई शज़र ना मिला  ज़िन्दगी में कोई भी हमसफर ना मिला  हमने नेकियों पर भी बदी का सिला देखा  ज़ुल्म सह-सह  कर उन्हें बस हँसते देखा   माना कल फिर से ये मंज़र बदल जायेगा कोई ना कोई बादल तो जरूर बरस जायेगा  आराधना      प्रीत कि अजब दास्ताँ क्या कर  देखी  घनीभुत पीड़ा में दूसरे कि खशी देखी हवाओं का रुख कब जाना किसी ने हर घड़ी बस तुमको आवाज़ दे  दी  

तुम मिले

ना जानें कैसे तुम जी लेते हो  पराई पीड ख़ुशी से ज़ी लेते हो उदास हिय ले किस से मिले हमें अपने क्या  पराये न मिले  एक तुम थे बहुत दूर से मिले जैसे दरिया कोई धारे से मिले समय के बीतते अन्तराल में चन्द मुस्कराहटों के साथ मिले आराधना राय 

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी  तू एक सवाल है रोज़ ज़ीने कि वज़ह देती है सितम पे सितम ये हुआ है हँसी में आँख भी नम देती है ये ख़्वाब और नग़मे देती है  ज़ीने के सलीके नए देती है  हालात यू ही जन्म नहीं लेते लोग मर  कर जी नहीं लेते अपने काँधे पर सलीब उठा मिलों दूर यू ही नहीं चल लेते। आराधना

नीर

प्रवाह में बहते नीर से अब पूछों जलज थामे वीर अम्बर से  पूछों  धारा ने पाया और क्या  दे दिया ये  तुम ज़रा सोचों और तुम देखों सूखती है धरती जब तू प्यास से थकन  मिटती नहीं उस आस से ग़रज़ कर चले जाते है जब मेघ ये बरसती है जो कहीं  बन कर बूंद सी क्यू बंद  हुई ये फिर किसी  सीप में

तेरे अहसास

तुम्हारी यादें मधु मालती सी फूलती है। तेरे हाथों की खुशबू  से साँसे बोलती है। ज़रा सी मुस्कराहट मन को   भिगोती है.। कहीं तुम से मिले थे  हम नज़र ये बोलती है। मेरी बातों में तेरे अहसास बोलते है। ना कौन से कितने राज खोलते है आराधना