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Showing posts from April 3, 2015

उदासी नज़्म

तमाम ख्वाहिशें पल में खाक हुई बात ही बात में क्या खता हुई किसी दरख्त का साया पासबां नहीं धुप रास्तों कि जब नसीब हुई पाँव  नहीं दिल पे छाले पाए है  गम मिरे नाम इतने आए है बू - ए आवारा पूछती रही गम का सबब भटकती रही थी यू  भी तेरे बगैर कहीं शाम के बाद  तेरे  निशां होंगे कहाँ वक़्त से गुज़रें तो अब हम होगे कहाँ जश्न रुसवाइयों का मानते भी क्यों सामने खुदा रहा अरु उसे भुलाते भी क्यों आराधना राय अरु