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Showing posts from April 27, 2015

कसक

मन कि कसक मन में ही कही  रहती है इंसानियत परिंदो के मानिंद  ही रहती है   मन हिंडोले कि तरह यही बस कहता है  तू कही भी रहे मेरे आस -पास  रहता  है  मन में बेचैनियाँ खुमार बेशुमार रहता है  मैं तेरी हूँ कि नहीं कोई बार बार कहता है  एक बार ज़ी उठू तेरे साथ पहले कहता है बात लम्हों कि है क्यों हर बार कहता  है  आराधना राय  

अमृत रस

सुन रहे है हम सुन रहा है तू  साथ चल मेरे कह रहा है तू  नैन ये कहे प्रीत कर रहा है तू   सुख कि आस में ज़ी रहा है तू जीवन अमृत सा पी रहा है तू आँखों में मधुरिम रस बसा तू प्रीत कि नौका चले कह रहा तू  ज़िन्दगी कि फिज़ाओ में भी तू समुंदर मंथन का जीवन सार  तू विष को जीत अब अमृत रस  पी मन में बस रहा सुगंध कि तरह ज़ी तेरे उजाले बड़े निराले कह रहा है तू  आराधना राय 

मन कि वृद्धि

मन कि वृद्धि -------------------- रोज़ - एक ही सोच थी सब कुछ बदल जायेगा वक्त के साथ परेशानी चली जाएगी और जीवन  सरल हो  भी यही पायेगा। उस दिन वो धबरायेगी नहीं साहस से जीवन महकाएगी इस  कशमकश में जी पायेगी उस लड़की के पिता नहीं थे पर ज़िम्मेदारी थी बोझ थी   इसलिए ज़िन्दगी हँस  कर  भुला रोज़ -यही सोचती थी  सब परेशानी  चली  जायेगी  जीवन जीने के लिए कोई सरल युक्ति  भी आएगी।  पर सोच लेने से मात्र  से जीवन आसान कब हुआ  है ऑफिस में जीवन संघर्ष हुआ है  लेने - देना से ही यहॉ  सब है कनेक्शन प्रमोशन यही  सब मन में अरमान आस भी एक  तनख्वाह में बढ़ोतरी हो जाये,  पर ऐसा कब हुआ, ऑफिस में सब से कम काम करने वाली सुंदरी भी उस से बाज़ी मार गई अप्रेज़ल वाले दिन सब पा गई   ज़ुबा पर ताले मन बेचैन थे सबने  नया सबक सीखा था।  नए बॉस  चाय पीते देखा था , बात प्रेम या प्रीत कि नहीं थी अन्तर मन,भी  इन्टर- कनेक्शन की थी हर पावरफुल आदमी कि बात सब  ही मानते है उसे जानते है   जान गई थी, कोई दुखी मन से भी ज़िंदगी तार लेता है कोई सब कुछ कर कशमकश में जीता है ,मरता भी है उस लड़की के पिता नहीं थे