कविता --------------------------------------------------------- दुनिया के बाजार में चंदन नहीं बेचा करती हूँ दीप से तुलसी वदनं किया करती हूँ तन की ओट में मन का व्यापार नहीं करती हूँ संबंधों को मन से जीया करती हूँ आँचल, रौली, मौली का खेल नहीं करती हूँ पूजा- अर्चना से नमन किया करती हूँ नारी की अस्मिता का मान किया करती हूँ अश्रु को पौंछ जीवन जीया करती हूँ नदियों की धारा अविकल बहा करती हूँ पत्थरों से निकल आगे राह लिया करती हूँ अरु" सहज नहीं जीवन जीना अरण्य सा जीवन में हर गीत नया जी कर हँसती हूँ आरधना राय "अरु"
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