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Showing posts from April 12, 2015

ना जाने क्या सोच कर

राह में कोई था ही नहीं अपना क्या  ये सोच कर  लोग हँसते रहे मेरी बर्बादी का काफिला देख कर  हर एक लम्हा गुज़र ही जायेगा जाने क्या सोच कर  ज़ख्म है भर जायेगे देने वाले ने दिए क्या देख कर  उसे अपना ही अहसास नहीं क्यों तुझे कुछ भी देगा   उसको हम दगा दे आये कब के जाने क्या सोच कर  वफ़ा पे इल्ज़ाम धरते रहे वो ना जाने क्या सोच कर   हम भी सितम सहते रहे क्यों ना जाने क्या सोच कर  आराधना 

जाने वाला

 मेरा रहबर है वो बताती रही  तेरे साथ जो था जाने वाला  तन्हाई ये कौन सी बाक़ी रही   दिल को जो था जोड़ने वाला  एक फ़क़त याद ही बाकी रही    उसकी तस्वीर ये बताती रही     हर शाम को जो लुभाती ही रही किसकी किस्मत थी बताती रही  नाज़ों नख़रे वो यू उठती ही रही  काँच सा दिल है बताती ही रही  मैं उम्र भर इंतज़ार ही करती रही  ले गया घर मेरा उठ के जाने वाला   आराधना  

परिचय

1994 मेँ हिंदी अकादमी द्वारा पुरस्कृत , मेरी सहेली नामक मैगज़ीन  मे कहानियाँ लिखी  नाटक   और कुछ रेडिओ प्रोग्रम्मेस  की स्क्रिप्ट लिखने के एक़ अन्तराल बाद दुबारा से हिंदी लेखन करने का दुःसाहस  कर रही हू । I write my English short story blog in  http:// aradhanakissekahniyan. blogspot.in/and  I write Hindi story as tulika and urdu nazm in devanagari script as a  

मात

मात ------------------------------------------------------------------------------------------ वक़्त के साथ हालत बदल जाते है लोग एक दिन सब को भूल जाते है एक हम है बातों को बताये जाते है तेरी यादों में दिन भी लुटाये जाते हैं तुझ पे एतबार क्यों हम किये जाते है बिना ही बात गम को क्यू पिये जाते है इस बहाने ज़िन्दगी हम जीये जाते है मात खुद को ही हम क्यों दिए जाते है आराधना

हो के उठ

छाया चित्र। शिखर राय सितम पर सितम उठा एक बार मुस्कुरा के उठ कोई फिर साज हसी उठा रोज़ फसाने दिल से उठा  साहिल से कश्ती तो उठा सागर  में  डूब  के  भी उठ   दिल -ए -दागदार से उठ ज़िंदगी में रवा हो के उठ  आराधना