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Showing posts from June 21, 2015

पीड सी

पात पात पर इठलाती प्रहरी भोर हो कोई सुनहरी तुम भोर हो पहली किरण कि और मैं ढलती साँझ सी कर रही नव किसलय स्वादन प्रथम रंगिणी विभोर सी मैं सूर्ये नहीं ना  हूँ रत्नाकर हूँ सूर्ये कि पीड सी                                                                                                                                                                   तिमिर को सह कर  ह्रदय में चंद्र कि विभा सी  मिटा कर आलोक में स्वयं को  बनी  नव गीत सी तुम जीवन के प्रयाण का प्राण मैं अंत हूँ सुरभि सी छेड़ती है राग-प्रेम बन  "अरु" का  मानों ह्रदय कि टीस सी आराधना राय
             चली आएगी  ==================== चुप चाप एक दिन चली आएगी  उदास  चेहरे पे हँसी भी  आएगी  ज़िंदगी के नए फ़लसफ़े सुनाएगी  दास्ताँ अपनी भी वो सुना जाएगी  आँखों के फ़साने तुझे भी सुनाएगी  एक दिन चुप चाप चली वो जाएगी  शाम ना कोई फ़िर आज सी आएगी  वो चुप चाप आई थी चुप ही जाएगी  ग़मों का सौदा कर खुशी दे जाएगी  ये "अरु" भी  हज़ार बात कह जाएगी  आराधना राय 

बाबूल

बाबूल --------------------------------------------------------- बचपन में तेरी उंगली को जब यू थाम चली थी डगर उसी दिन से ये लंबी पहचान ही चली थी तेरी बाहों में आ कर देखा ये पूरा ही संसार मैंने बाबूल तेरे आँगन कि वो ही नन्हीं सी कली थी तेरी बातों ने मेरी जुंबा को नए से शब्द ही दिए थे जीवन से पहचान उसी दिन ही जा कर तो हुई थी तेरे बिन अश्रु धारा कितनी यहॉ यू बहा कर चली हूँ बगैर धुप का पौधा ही हूँ पेड़ मैं कब बन ही सकी हूँ तेरी हर बात को आज भी मन में यू बसाए हुए हूँ कठिन से जीवन कि डोर "अरु " ये भी थाम चली हूँ आराधना राय
क्या कहिये  ------------------------------------------------    जिन कि फ़ितरत ही यू पत्थर से  मारने कि हो   प्यार कि बातें भी उन से अब यू  क्या कहिये  ज़ज़्ब कर रख ले बादल जब यू कोई आब ही ना बरसने वाली उस बरसात का क्या कहिये  तिश्नगी है इश्क़ कि यों बढ़ती ही ये तो जाएगी  रूह प्यासी रही ज़ज़्बात कि "अरु" क्या कहिये   आराधना राय  कोई रूह पुरानी  होगी कहीं , दिल कि वादियों ने पुकारा होगा कहीं