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             चली आएगी 
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चुप चाप एक दिन चली आएगी 
उदास  चेहरे पे हँसी भी  आएगी 
ज़िंदगी के नए फ़लसफ़े सुनाएगी 
दास्ताँ अपनी भी वो सुना जाएगी 
आँखों के फ़साने तुझे भी सुनाएगी 
एक दिन चुप चाप चली वो जाएगी 
शाम ना कोई फ़िर आज सी आएगी 
वो चुप चाप आई थी चुप ही जाएगी 
ग़मों का सौदा कर खुशी दे जाएगी 
ये "अरु" भी  हज़ार बात कह जाएगी 

आराधना राय 




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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना