इंतहा कागज़ की कश्ती से ये दुनिया पार लगाते है बेहोश सही ,लेकिन कब हम इल्ज़ाम लगाते है हम हो कर ख़ाक नशी कुछ यू ही फ़रमाते है मंज़िल ना सही ,ना सही एक सफर को जाते है मिट कर जो रहे ज़िंदा एक ख्वाबे सहर सा है अहले गम को निभाना क़्या दस्तूर पुराने है दरियाफ़्त करे किससे , किस दशत ने जाना है उलझन ये अजब समझो , दरिया यही प्यासा है जो जल न सके बुझ कर वो आग नहीं हूँ "अरू " कुछ दहके हुए शोले ,दामन में मेरे बाकी है ...
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.