इंतहा कागज़ की कश्ती से ये दुनिया पार लगाते है बेहोश सही ,लेकिन कब हम इल्ज़ाम लगाते है हम हो कर ख़ाक नशी कुछ यू ही फ़रमाते है मंज़िल ना सही ,ना सही एक सफर को जाते है मिट कर जो रहे ज़िंदा एक ख्वाबे सहर सा है अहले गम को निभाना क़्या दस्तूर पुराने है दरियाफ़्त करे किससे , किस दशत ने जाना है उलझन ये अजब समझो , दरिया यही प्यासा है जो जल न सके बुझ कर वो आग नहीं हूँ "अरू " कुछ दहके हुए शोले ,दामन में मेरे बाकी है Tulika ग़ज़ल ,गीत ,नग्मे ,किस्से कहानियों का संसार copyright : Rai Aradhana © اتها کاغذ کی کشتی سے یہ دنیا بھر میں لگاتے ہے بیہوش صحیح، لیکن کب ہم الزام لگاتے ہیں منزل نہ سہی، نہ حق ایک سفر کو جاتے ہے ہم ہو کر خاک نشي کچھ یو ہی فرماتے ہے دريافت کرے کس سے، کس دشت نے جانا ہے اہل غم کو نبھانا کیا دستور پرانے ہے درياپھت کرے کس سے، کس دست نے جانا ہے الجھن یہ عجب سمجھو دریا یہی پیاسا ہے "جو پانی نہ سک
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.