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اتها इंतहा

                             

इंतहा 


कागज़  की कश्ती  से  ये  दुनिया पार  लगाते  है 
बेहोश  सही ,लेकिन  कब  हम इल्ज़ाम  लगाते  है 

हम  हो  कर  ख़ाक नशी  कुछ  यू  ही फ़रमाते  है 
मंज़िल ना सही ,ना  सही  एक सफर को जाते है 


मिट कर जो  रहे  ज़िंदा  एक ख्वाबे  सहर  सा  है 
 अहले  गम  को  निभाना  क़्या दस्तूर पुराने  है  

  दरियाफ़्त   करे किससे , किस दशत ने जाना है 
उलझन  ये अजब समझो , दरिया  यही प्यासा  है 


जो जल न सके  बुझ  कर वो आग नहीं  हूँ "अरू "

कुछ  दहके  हुए  शोले ,दामन में   मेरे बाकी  है 



copyright : Rai Aradhana ©



اتها 
کاغذ کی کشتی سے یہ دنیا بھر میں لگاتے ہے
بیہوش صحیح، لیکن کب ہم الزام لگاتے ہیں
 
منزل نہ سہی، نہ حق ایک سفر کو جاتے ہے
ہم ہو کر خاک نشي کچھ یو ہی فرماتے ہے  
 دريافت کرے کس سے، کس دشت نے جانا ہے
 اہل غم کو نبھانا کیا دستور پرانے ہے
درياپھت کرے کس سے، کس دست نے جانا ہے
الجھن یہ عجب سمجھو دریا یہی پیاسا ہے
"جو پانی نہ سکے بجھ کر وہ آگ نہیں ہوں "انا
کچھ دهكے ہوئے شعلے، دامن میں میرے باقی ہے


translation in Urdu

 In  english  scipt 
                                       
Inteha 

kagaz  ki  kashti se ye  duniya paar lagate hai 

behosh sahi lekin kab  hum ilzaam lagate hai 

hum ho ker khak nashi kuch  yu pharmate hai 

manzil na sahi ,na sahi ek safer ko jate hai 

mit ker jo rahe zinda  ek kwabe  saher sa hai 

ahale  gum  ko chipana kya dastur purane  hai 

dariyaft kare  kisse ,kiss dasht Ne jana hai 
uljhan  ye ajab samjho ,dariya  yahi  pyasa  hai 


JO JAL  NA SAKE BHJH KER AAG NAHI HU ANA 
KUCH DHAKE HUE SHOLE ,DAMAN MAIN MERE BAKI HAI
                            

                                                                         

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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

नज्म चाँद रात

हाथो पे लिखी हर तहरीर को मिटा रही हूँ अपने हाथों  से तेरी तस्वीर मिटा रही हूँ खुशबु ए हिना से ख़ुद को बहला रही हूँ हिना ए रंग मेरा लहू है ये कहला रही हूँ दहेज़ क्या दूँ उन्हें मैं खुद सुर्ख रूह हो गई चार हर्फ चांदी से मेहर  के किसको दिखला रही हूँ सौगात मिली चाँद रात चाँद अब ना रहेगा साथ खुद से खुद की अना को "अरु" बतला रही हूँ आराधना राय "अरु"