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Showing posts from June 5, 2015

आशिकी

वो गम ज़दा था नसीहत ना रास आई उसको परेशां था ज़माना ना कभी बहका पाया उसको  ख्वाब देखने कि कभी भी आदत नहीं थी उसको रात किसी तस्वुर ने फ़िर से चौकाया था उसको कौन  सी हक़ीक़त बयां कर रोकता वो भी उसको वो फूलों कि सेज़ पर नहीं काटो पर बैठता उसको वो आशना था आशिकी ना कभी रास आई उसको अपना दिल लिए वो पत्थर को मनाता रहा बरसों आराधना राय