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Showing posts from April 14, 2015

दौर में

कविता ========================================== मैं अपने दिल में कुछ छिपा ना सकूँगी हार कर भी जीत के तुम्हे पा न सकूँगी कोई राज नहीं  तुम को ना बता सकूँगी उम्र बीती राह में बसेरा ना बना सकूँगी राहत -ए -दौर में मंज़िल न बन सकूँगी वक़्त आया तो दरिया बन चल सकूँगी   आराधना राय 

सरगम

छाया चित्रकार शिखर राय आँख का पानी कहु या मैं आँख का मोती लहराये ये बिंदु जल जब आद्र हुआ मन सपने थे तेर पर मेरी आँखों में है अब बंद साँसो में धड़केगी  यू ही ये सरगम हरदम आँखों में लहराता है मधुरिम सागर हरदम झिलमिल से सपनों पे पहरे है  अब  हरदम  आराधना राय

आग

सभ्यता का ये कैसा हुआ विकास है नर पशुता से कर रहा क्यों संहार है। सुनता नहीं कोई जब कोई पुकार है घायल होता तब यही हर  इंसान  है भूख से बेहाल यहाँ खुद किसान है भूमि बंज़र,ज़र्ज़र और हुई बेहाल है रोटी कि जगह भूख पकती क्यों है चूल्हें की आग ये  अब दिल में क्यू है आराधना