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Showing posts from August 16, 2016

दिन ढले तो रात मेरी रो जाती है

 गोया की ग़ज़ल हूँ खामोश सी रहती हूँ तेरे आस- पास हूँ मगर गुम सी रहती हूँ दुखतर सा दुख लिए दो शीज़ा कहती हैं रात होते हीदिन की परेशनी है दिन ढले तो रात मेरी रो जाती है, जिंदगानी का सफर रो रो कर जीने वालो हँस से दाने चुगते है, मंटो की लिखी किताब हूँ .पाथेर पांचाली भ्रमकीताब हूँ य चंदरबरदाई की गाथा ऐ सनम बता कौन हूँ चंदकांता............... घात की गहराई रोमियो- जूलियट............................\आराधना राय अरु