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Showing posts from April 29, 2015

वज़ूद

साभार गुगल इमेज़ तमाम उम्र बग़ैर शज़र के गुज़रीं ज़िंदगी कैसी भी थी धूप में गुज़री मुझी से वो वादे हज़ार क्यू करता है मुझे भूल जाने कि बात भी करता है जला के घर मेरा वो क्यू अब हँसता है जाने किस आशियाने कि बात करता है मेरा वज़ूद है उस से मुझे वो ये कहता है  मेरे ही यादों के दरिया में बहता रहता है आराधना राय

ज़िंदगी

साभार गुगल इमेज़ समुंदर भी कश्तियाँ को तोड़ देते है तूफानों में जिन्हे साहिल छोड़ देते है ख़ुशी कि उम्मीद पर ग़म ले लेते है हाल दिल का सब से बयां कर देते है अपना नाता दुनियाँ से जोड़ लेते है गुनाह अपने ही  सर हम ओढ़ लेते है खिज़ा में पत्ते भी साथ छोड़ देते है ग़िला क्या उनसे जो हाथ छोड़ देते है ज़िंदगी इसी बहाने से तुझे देख लेते है आँसुओ में भी खुशियाँ ढूंढ ही ज़ी लेते है आराधना राय

जीवन पुकार

प्रीत कि डगर सब से खरी  होती है यहाँ जीत हार किस कि कब होती है मन में प्रेम निष्ठा उत्कृष्ठ होती है मन रहे तृषित जब भी पुकार होती है बनते सवरते जीवन में आस होती है सूर्ये कि क्या कभी यू हार भी होती  है अंतस  में ही अंतःसलिला भी होती है जीवन पुकार चलने के लिए होती है आराधना राय