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Showing posts from March 22, 2015

शेष

शेष रही केवल आशाये   जो बनी कोमल भावनाए पँख ,पखेरू उड -उड़ जाये  साजन तुम क्यों नहीं आये वर्षा जल जब मेघ गिराये सब रस उर में ही बस जाये मधुर भावनाओं का परिहास वहाँ रहा  तेरा और मेरा  हास् जब मन की  पहचान नहीं थी बोलो अब किन नयनं कि आस सदा ना होती जग में  पूरी प्यास  जब प्राणों को प्राणों कि हो  आस रूप, रंग के इस नव यौवन पर ही   क्या यू ही चलेगा तेरा अभिसार और जगत के बढे बंधन पर भी चल पाया क्या ये सब कार्य व्यापार  आराधना @copyright