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Showing posts from May 21, 2015

निभाया था

अपनों ने जब कोई मुझ से रिश्ता ना निभाया था तो उसी ने आकर गम कुछ इस तरह बटाया था मुझे  नहीं उसने मेरे ज़ख्मों को गले लगाया था  कौन कहता है उस रोज़ वो कुछ भी ना लाया था वो किस तकलीफ़ में था ये बात कह ना पाया था दिल कि हज़ार खुशियाँ वो मुझे ही  देने आया था मेरे मकान के दरों -दीवार कब से यू ही ढह रहे थे वो मेरा टूटा हुआ घर फिर बनाने ही तो आया था सरे बाज़ार वो मुझ से कुछ भी तो कह ना सका था वो मेरे दामन को कीचड़  से ही  बचाने तो आया था    आराधना राय

अपना हो गया

किस कि क्या यू भी  खता थी सज़ा कौन सी ये वो  सह गया। बात कुछ भी ना उनसे यू  हुई थी हंगामा सा हर तरफ क्यों हो गया। तेरे शहर में हो कर हम  गुमनाम थे तुझ से यू भी हम कभी  अनजान थे बिन कहे ये भी क्या फ़साना हो गया तेरी अदा पे हर कोई  दीवाना हो गया कहने को वो फ़क़त बस ग़ैरो सा ही था उसका मेरे  दिल में ठिकाना सा  हो गया रिश्ता कुछ ना था उससे वो मेरा हो गया  अपनों से भी बढ़ कर वो  अपना हो गया आराधना राय