सदियों सदियों जागा है वो ,बिसरी बात सुनाने को नव प्राचिरो से भी झाँका ,खोई बात बताने को सुनो यहाँ फिर सब अपना खोता है ,जगाये खंडहर सोता है वरद स्वयम अपना खोता है ,पल पल खड़ा मौन बस रोता है। जगाये खण्डहर सोता है युग -युग तक होकर मौन,अपरिमित गाठों को खोल वीर सा सजग बन ,चुप चाप सहता है,कुछ ना बोल। बस अब ये सोता है स्वप्न जड़ित सिंहासन थे ,या फिर कल्पित आधार सच जब बट कर खड़ा किया था किसने किया उद्धार। कुछ ना कहे जग सोता है ज
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.