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Showing posts from April 9, 2015

भगवान भी मंदिरों में अब तक बिकता है

भगवान भी मंदिरों में अब तक बिकता  है दो रूपये में हर दरवाज़े बेमोल  मिलता  है कहने से भगवान भी कही पर दिखता   है मांगने पर भी तुझे कहीं  नहीं मिलता है पीड़ वहन करने पर सब  यही मिलता  है सह के घात- आघात  मनुज ये  बनता है आराधना
जिसे  ढूंढ़ते फिरे  दर -  बदर ना इधर मिले ना उधर मिला तू खयाल बन के समा रहा नूर के वज़ूद में  हर रूप में

कठोर धरातल

साभार गुगल इमेज  छूटे अब  सभी खिलौने  रूठा बचपन का संसार  हाथ क्या आया उनके  ये कागज़ का व्यापार  भीख मांगते उन  हाथों को  मिला जब अभाग्य अपार  नही किताबें संगी जिनकी   क्या उन्हें ना भाया प्यार  रही सदा फीकी ममता ही  ना मा और पिता का साथ लड़ा लड़कपन सड़कों सड़कों  लेकर भटके हाथ कटोर- दान  कठोर धरातल , मैला आँचल  क्या निभा पाया उन से संसार  दोष क्या देना उनका फिर भी  थे विधि के ये  सब क्रूर विधान  कभी -कही तो सब कुछ पाकर   जग में और करें बस  हाहाकार  आराधना 

हरे पेड़ पत्ते

साभार गुगल इमेज  हरे पेड़ पत्ते सुगन्धित वो कलियाँ बरसाते थे सावन रिमझिम से बादल अब धूमिल हुई क्यों तड़पती है धरती बची आस बाकी सूनी वसुधा कि न बसेगा पानी ऋण कैसे चुकेगा वीर किसानों का ना बरसा गर नीर जब ना पहनेंगी वसुंधरा चूनर धानी अब धूमिल परिवेश क्लांत  दुखी देश आराधना 

तुम पूछो

साभार गुगल इमेज़ क्या देखते है हो  अब इन नज़ारों में  जा के कभी  इन परिंदो से तुम  पूछो  भरी उड़ान दाने पानी कि जब उसने  गिरा क्यों कभी वो  सय्याद से पूछों   मुकम्मिल कौन सा अब जालिम है फ़साना जाके किसी और से भी पूछो मुसल्सल एक बात आकर रोक देती है बढ़ा के आस क्यों हाथ मेरा रोक लेती है आराधना