भूख, तृष्णा ,प्यास,जीवन बना हाहाकार मृत्यु से रचा बसा हुआ है ये सकल संसार रुष्ट है भगवान या सृष्टि का अंत हुआ है कलरव मचा कैसा ये कौन सा धुँआ उठा है मन नहीं तन भी यहाँ पर व्यापार हुआ है जीने का कौन जाने साज़ो समान हुआ है हर कोई इस दौर में क्यू भगवान हुआ है देख कर भगवान भी अब परेशान हुआ है। आराधना राय
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