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भगवान परेशान हुआ






भूख, तृष्णा ,प्यास,जीवन बना हाहाकार
मृत्यु से रचा बसा हुआ है ये सकल संसार

रुष्ट है भगवान या सृष्टि का अंत हुआ है
कलरव मचा कैसा ये कौन सा धुँआ उठा है

मन नहीं तन भी यहाँ पर व्यापार हुआ है
जीने का कौन जाने साज़ो समान हुआ है

हर कोई इस दौर में क्यू भगवान हुआ है
देख कर भगवान भी अब परेशान हुआ है।
आराधना राय

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

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