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Showing posts from April 29, 2017

नज़्म

रोज़ मिलती है सरे शाम बहाना लेकर जेसे अँधेरे में उजालों का फसाना लेकर चाँद के पास से चाँदनी का खजाना लेकर मुझको अनमोल सा एक नजराना देकर मेरा दर दर नहीं कुछ नहीं है क्या उसका जब भी मिलती है यही एक उलहना लेकर रात भर कितने आबशार बहा के जाती है पर वो जाती है तो किस्मत का बहाना लेकर - आराधना राय