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Showing posts from May 29, 2015

वो फुटपाथ

वो फुटपाथ पर दिन भर सामान बेचती थी  रात भर जिस्म का वो भी बाज़ार देखती थी  इश्क़ के नाम पर वो पैगाम क्या भेजती थी  वहशियत का रोज़ वो इनाम खुद झेलती थी   हाथ -फैला  हर  रोज़ चन्द सिक्के देखती थी  अपने हाथ में वो क़िस्मत का नाम देखती थी  उम्र भर जाने किसकी वो क्यू राह देखती थी   जीने कि चाह में रोज़ ही मर कर वो देखती थी  नज़्म आराधना राय 

क्या पाओगे

आज हूँ तुम कल मुझे नहीं तुम पाओगे मेरी आवाज़ भी सुन नहीं तुम यू पाओगे दिल ही दिल में तुम भी खूब  पछताओगे मुझ को खोकर बता तुम यहाँ क्या पाओगे रूठ कर तुम भला क्या मुझ से दूर जाओगे ज़र्रे -ज़र्रे में मुझको ही तुम  बिखरा पाओगे उलझनें अपनी ही खुद तुम यू बढ़ा जाओगे हर जगह वीरान सी मेरे बगैर तुम पाओगे ना रो सकोगे तुम फिर ना यू मुस्कुरओगे दिल के टूटने कि आवाज़ ही सुन पाओगे मेरे ज़ख़्मों को कुरेद कर तुम क्या पाओगे मैं जो रोइ तो तुम भी तो अश्क़ बहाओगे नज़्म  .... आराधना राय

सुना मुझे

           सुना मुझे ------------------------------------------------- ज़िन्दगी कोई और कहानी  तू सुना मुझे भूख और प्यास कि बातें यू ना सुना मुझे मेरे  हालातों ने ही बहुत मार गिराया मुझे अपनी क्या बात यू  ही अब मैं बता दू तुझे मेरे रोने पर क्यों  ना कभी रोना आया उसे  मेरा हमदर्द था बाज़ार में ले आया वो मुझे अपने  हाथों में डोर बांध ले कर आया मुझे मैं उसकी कठपुतली हूँ ये बताने आया मुझे आराधना राय