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Showing posts from June 1, 2015

बात

=============================================== बात है राज़ क्या यू  बताये अपना ये हकीकत है वो मानते है  सपना कौन कैसे जाने कब जी ही जाता है कौन मुक़दर को यू ही  आज़माता है मुझे साहिल कभी यू मिले ही नहीं समुंदर मैं डूबी यू ही चली जाती हूँ हम जिए या ना जीये तेरे अरमान में ज़िन्दगी अपनी रौ में बही ही जाती है कल का सामान बांध ले तू बस अभी आज कि रुखसती "अरु" हुई जाती है आराधना राय

पर्यावरण पर कविता .....धरती का दुःख

पर्यावरण पर  कविता धरती का दुःख …………………….............................................. वो बुरी शक्ल लिए मिलने आई थी हाथों मैं कटोरा भीख का ले आई थी रूखे -सूखे  केश लिए कहने आई थी आहात थी दुःख साथ ही ले आई थी आँखों में आँसू भर वो जब कराही थी दर्द कि आवाज़ नहीं सुनाने आई थी धरती थी अपनी पीड़ा बताने आई थी कौन सी त्रासदी उसे नहीं रास आई थी वृक्ष , वन , नदी सब का दर्द ले आई थी बात  किसी कि समझ  में नहीं आई थी प्रकृति का उपहास मनुज ने  उड़ाया था विपति उपहार स्वरुप घर ले  आया था जब धरा ने तीष्ण हथियार ही उठाया था हाय किस्मत ने भी तो बड़ा ही रुलाया था आदति जब श्रृंगार कर के स्वयं ही आई थी मनुज तूझे  बलात्कार क्यों रास आया था आराधना राय

वक़्त

वक़्त ---------------------------------------------------- जाते हुए वक़्त को मैं थाम नहीं सकती  क्यू  मुझे वो गुज़रा वक़्त याद आता है देख आये है इस  दुनियाँ भर के मेले को मेरा बचपन अभी तक ही मुझे रुलाता है किसकी उगली थी थाम कर चली कभी  तेरा साया था वो आज भी याद आता है थोड़ा सकून ज़िन्दगी तुझे  मिलता नहीं    दिन का शोर ही रातों में भी क्यू डराता है  मन ये पंछी कि तरह ही क्यू उड़ा जाता है जाने किस कि खोज  ये कहा को जाता है कितना पागल है कुछ समझ नहीं आता है  कौन किस के लिए यू लौट के आ  जाता  है  कह कर नहीं आता बेवक़्त ही आ जाता है  ये बुरा वक़्त "अरु" बता कर कहा आता  है  आराधना राय   

किसके लिए

वो जलाता रहा आँधियो में दिये ना जाने क्यों और किसके लिए एहसास अपने आप में कोई लिए वो चल रहा था जाने किसके लिए पैरों छाले और ज़ख़्म दिल में लिए वो भरता रहा बस औरों के ही किये वो मुरीद था तेरा ये ही बताने के लिए क्यों बैठा है वो यू  इस ज़माने के लिए आँख में आँसू का एक बस कतरा लिए चुप है बड़ी देर से "अरु"जाने किसके लिए