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Showing posts from May 26, 2015

ढूंढते रहे

ढूंढते रहे =============================== तेरी चाहत लिए ना जाने कहाँ यू घूमते  रहे मंज़िल कि तलाश में जाने क्या यू ढूंढ़ते रहे वादा नहीं तुझसे फिर सनम तुझे ढूंढते रहे बोझ कांधे उठा कर सदियों यू ही घूमते रहे रात दर्द की खामोशियों में तुझे क्यू ढूंढते रहे ख्वाब था फिर भी सिरहाने तुझे यू ही ढूंढते रहे किस कशमकश में थे क्यों ये बात पूछते ही रहे तेरे घर का पता किसी और से हम क्यू पूछते रहे तेरे बगैर ज़िन्दगी काटी और तुझे  भूलते ही रहे इसी सोच में जाने किस किस को खुदा बोलते रहे आराधना राय

गीत

गीत जानवर इंसानियत सीख जाएगा इंसान, इंसान भी नहीं बन पाएगा पत्थर भी एक दिन बोल कर जाएगा मानव तू भी पाषाण ह्रदय हो जाएगा संवेदना हीन वेदना क्या जान पाएगा कोई गीत यू ही अधूरा ही रह जाएगा अस्मां को क्या कोई यू झुका पाएगा हौसला है गर धरणी धीर कहलाएगा आराधना राय

सभ्यता के नाम

सभ्यता के नाम --------------------------------------- मेरे आँगन में भोर कि लालिमा छाई बिटिया तू जिस दिन घर में मेरे आई मलीन मुख पर क्रांति सी ले कर आई  मुझे लगा नन्ही परी मेरे घर पर आई अश्रुओं कि धार  किसी भी ने ना बहाई तू पूरे  घर को थी मन ही मन में सुहाई आज में दुनियाँ के रुख को देख घबराई तीरे किसने  सभ्यता के नाम के चलाये छींटा कसी देख़ बात ना समझ में आई क्यों परिधान कि बात यू हर घड़ी उठाई देखा नहीं महिला विश्व में सार्थक हो गई कहीं कल्पना ,कही एमली ,तो सैली राइड किरण अवतरित हो धूमिल नहीं हो पाई बेटी के अंतस कि बात क्या समझ  पाये जब किसी क्रांति में एक स्त्री दल होता है समाज भी जा के वही सगठित होता है जब कोई बेटे बेटी में अंतर नहीं पाता है स्त्री पुरुष के नाम कि दुहाई नहीं लगता है  नव किसलय विचारों का हनन नहीं होता वही समाज सभ्यता के गीत ही गा पाता है आराधना राय