रोज़ मिलती है सरे शाम बहाना लेकर
जेसे अँधेरे में उजालों का फसाना लेकर
चाँद के पास से चाँदनी का खजाना लेकर
मुझको अनमोल सा एक नजराना देकर
मेरा दर दर नहीं कुछ नहीं है क्या उसका
जब भी मिलती है यही एक उलहना लेकर
रात भर कितने आबशार बहा के जाती है
पर वो जाती है तो किस्मत का बहाना लेकर -
आराधना राय
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