अपनों ने जब कोई मुझ से रिश्ता ना निभाया था
तो उसी ने आकर गम कुछ इस तरह बटाया था
मुझे नहीं उसने मेरे ज़ख्मों को गले लगाया था
कौन कहता है उस रोज़ वो कुछ भी ना लाया था
वो किस तकलीफ़ में था ये बात कह ना पाया था
दिल कि हज़ार खुशियाँ वो मुझे ही देने आया था
मेरे मकान के दरों -दीवार कब से यू ही ढह रहे थे
वो मेरा टूटा हुआ घर फिर बनाने ही तो आया था
सरे बाज़ार वो मुझ से कुछ भी तो कह ना सका था
वो मेरे दामन को कीचड़ से ही बचाने तो आया था
आराधना राय
तो उसी ने आकर गम कुछ इस तरह बटाया था
मुझे नहीं उसने मेरे ज़ख्मों को गले लगाया था
कौन कहता है उस रोज़ वो कुछ भी ना लाया था
वो किस तकलीफ़ में था ये बात कह ना पाया था
दिल कि हज़ार खुशियाँ वो मुझे ही देने आया था
वो मेरा टूटा हुआ घर फिर बनाने ही तो आया था
सरे बाज़ार वो मुझ से कुछ भी तो कह ना सका था
वो मेरे दामन को कीचड़ से ही बचाने तो आया था
आराधना राय
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