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ज़िंदगी



साभार गुगल इमेज़

समुंदर भी कश्तियाँ को तोड़ देते है
तूफानों में जिन्हे साहिल छोड़ देते है

ख़ुशी कि उम्मीद पर ग़म ले लेते है
हाल दिल का सब से बयां कर देते है

अपना नाता दुनियाँ से जोड़ लेते है
गुनाह अपने ही  सर हम ओढ़ लेते है

खिज़ा में पत्ते भी साथ छोड़ देते है
ग़िला क्या उनसे जो हाथ छोड़ देते है

ज़िंदगी इसी बहाने से तुझे देख लेते है
आँसुओ में भी खुशियाँ ढूंढ ही ज़ी लेते है


आराधना राय

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय