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ना जाने क्या सोच कर




राह में कोई था ही नहीं अपना क्या  ये सोच कर 
लोग हँसते रहे मेरी बर्बादी का काफिला देख कर 
हर एक लम्हा गुज़र ही जायेगा जाने क्या सोच कर 
ज़ख्म है भर जायेगे देने वाले ने दिए क्या देख कर 

उसे अपना ही अहसास नहीं क्यों तुझे कुछ भी देगा 
 उसको हम दगा दे आये कब के जाने क्या सोच कर

 वफ़ा पे इल्ज़ाम धरते रहे वो ना जाने क्या सोच कर 
 हम भी सितम सहते रहे क्यों ना जाने क्या सोच कर 

आराधना 
















































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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

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