राह में कोई था ही नहीं अपना क्या ये सोच कर
लोग हँसते रहे मेरी बर्बादी का काफिला देख कर
हर एक लम्हा गुज़र ही जायेगा जाने क्या सोच कर
ज़ख्म है भर जायेगे देने वाले ने दिए क्या देख कर
उसे अपना ही अहसास नहीं क्यों तुझे कुछ भी देगा
उसको हम दगा दे आये कब के जाने क्या सोच कर
वफ़ा पे इल्ज़ाम धरते रहे वो ना जाने क्या सोच कर
हम भी सितम सहते रहे क्यों ना जाने क्या सोच कर
आराधना
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