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मंज़र देखा



gugal ke sojany se


मंज़र देखा 
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बेबसी में आस का मंज़र देखा जगह धुँआ -धुँआ सा देखा
आँख में आँसू सा देखा, हर शक्स सहमा हुआ सा देखा
रात के गहरे सन्नाटे में , जहरीली हवा के साये को देखा
सिहरता -कांपता सा मंज़र मौत कि आगेश में लिपटा देखा
उमर कट गई अँधेरे में उन्हें इक रौशनी के लिए तरसते देखा
तमाम उम्र कफस में रह कर बरहा हमने उजालो की ओर देखा
दफ़न मिट्टी में दबी लाशों का अम्बार लगा कर बस तमाशा देखा
जान पर खेल कर इंसान हर तरफ रोता हुआ पूरा -शहर ही देखा
काँपती रूह थी "अरु" लाचारियों का सुबह तक अजब दौर भी देखा
आराधना राय "अरु"


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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना