इंसानियत परिंदो के मानिंद ही रहती है
मन हिंडोले कि तरह यही बस कहता है
तू कही भी रहे मेरे आस -पास रहता है
मन में बेचैनियाँ खुमार बेशुमार रहता है
मैं तेरी हूँ कि नहीं कोई बार बार कहता है
एक बार ज़ी उठू तेरे साथ पहले कहता है
बात लम्हों कि है क्यों हर बार कहता है
आराधना राय
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