प्रवाह में बहते नीर से अब पूछों
जलज थामे वीर अम्बर से पूछों
धारा ने पाया और क्या दे दिया
ये तुम ज़रा सोचों और तुम देखोंसूखती है धरती जब तू प्यास से
थकन मिटती नहीं उस आस से
ग़रज़ कर चले जाते है जब मेघ ये
बरसती है जो कहीं बन कर बूंद सी
क्यू बंद हुई ये फिर किसी सीप में
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