ज़िन्दगी जब भी जैसी भी रही
उसी के क़ायदे कानूनों में ढ़ली
वक़्त का तक़ाज़ा करती ही रही
ढलती शाम टूटे जाम सी मिली
सफऱ में बहुत दूर हमें जाना था
रास्तों में कब अपना ठिकाना था
हर मोड़ पर बस वायदे सी मिली
ज़िन्दगी तू हमें क्यों देर से मिली
रास्तों के बाद बस रास्ते ही मिले
मकां मिला ना हमें मंज़िल ही मिली
आराधना राय
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