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संधर्ष

  

काले बादल  मन कि धरती पर उथल पुथल मचाते है 
जब नयन में अश्रु से भर स्मृति दीप वो ही जलाते है  
जल -तरंगिणी सी मधुरिम फुहारों में जग लहराते है 
नव -गीत प्राणों के यौवन सा जीवन में वो भर जाते है 
म्लान क्लांत  तू दिनकर  जब हृदय शुभ्र तू पा जाता है  
वेदनाओं से परे रहे वहीं तो  दुःख को भी सह कर जाता है 
जल कि बूंदों से भरा जाल ही मेध रथी कहला भी जाता है 
"अरू " संधर्ष कैसा भी हो जीवन तो ये चलता ही जाता है 
आराधना राय
copyright : Rai Aradhana ©
  

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना