काले बादल मन कि धरती पर उथल पुथल मचाते है
जब नयन में अश्रु से भर स्मृति दीप वो ही जलाते है
जल -तरंगिणी सी मधुरिम फुहारों में जग लहराते है
नव -गीत प्राणों के यौवन सा जीवन में वो भर जाते है
म्लान क्लांत तू दिनकर जब हृदय शुभ्र तू पा जाता है
वेदनाओं से परे रहे वहीं तो दुःख को भी सह कर जाता है
जल कि बूंदों से भरा जाल ही मेध रथी कहला भी जाता है
"अरू " संधर्ष कैसा भी हो जीवन तो ये चलता ही जाता है
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