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मान रख जाऊँ





सैकड़ो बार क्यों ठुकराई जाऊँ
कभी निष्कासित करी जाऊँ
 वन-वन   में भटकाई  जाऊँ
किसी राम कि सीता थी क्या
जो  अग्नि परीक्षा भी  दे जाऊँ

नहीं द्रौपदी मैं किसी की भी
जो पांडव मे भी बाँटी जाऊँ
है ये कौन सा साम्राज्य यहाँ
जहाँ रोज़ मैं निगली जाऊँ
कौरवों के साये में रह कर
रोज़ ही दाँव पर खेली जाऊँ

रोज़ अख़बार कि सुर्खियों में
इधर -उधर ही बांची जाऊँ
रद्दी की ढेरों में फेंकी जाऊँ
 चाय कि प्यालियो कि तरह
मेज़ पर बस परस भर दी जाऊँ

भूमि के टुकड़े कि तरह यू ही
भागों में बटती ही चली जाऊँ
श्याम  नहीं तुम   राधा बन जाऊँ
राम नहीं तुम  मैं सीता  बन जाऊँ
नारी हुँ नारी का मान रख जाऊँ

आराधना




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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

नज्म चाँद रात

हाथो पे लिखी हर तहरीर को मिटा रही हूँ अपने हाथों  से तेरी तस्वीर मिटा रही हूँ खुशबु ए हिना से ख़ुद को बहला रही हूँ हिना ए रंग मेरा लहू है ये कहला रही हूँ दहेज़ क्या दूँ उन्हें मैं खुद सुर्ख रूह हो गई चार हर्फ चांदी से मेहर  के किसको दिखला रही हूँ सौगात मिली चाँद रात चाँद अब ना रहेगा साथ खुद से खुद की अना को "अरु" बतला रही हूँ आराधना राय "अरु"