मेरे परमात्मा मेरी आत्मा हो तुम
अधीर विकल क्यों ये रहे मेरा ये मन
विचारों का कोहराम बना ये कोलाहल
मनवा ना माने रे मेरा ये तो है व्याकुल
जग को जगाने वाले तुम को क्या मनाऊँ
हे अंतर्यामी कौन सी बतियाँ करू बताऊँ
शुद्ध परिष्कृत इस जग कि सारी अवधारणा
निर्मल ह्रदय में तुम वासित रहे "अरु" भावना
आराधना राय "अरु"
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