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परमात्मा






 मेरे परमात्मा मेरी आत्मा  हो तुम
 अधीर विकल क्यों ये रहे मेरा ये मन
 विचारों का कोहराम बना ये कोलाहल 
 मनवा ना माने रे मेरा ये तो है व्याकुल
जग को जगाने वाले तुम को क्या मनाऊँ
हे अंतर्यामी कौन सी बतियाँ करू  बताऊँ 
शुद्ध परिष्कृत इस जग कि सारी अवधारणा
निर्मल ह्रदय में तुम वासित रहे "अरु" भावना
आराधना राय "अरु"


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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना